POEM BY AQUILA KHAN
तुझ पर हुए ज़ुल्म की,
हर हद्द पार है,
ऐ कश्मीर तेरे बुहत गुनेहगार है।
तेरे नाम को जुर्म बनाया है।
जो तुझ पर गर्व करते है।
प्यार ना समझा जिनसे कभी
वह अखंडता की बात करते है।
पाखण्डी है वह मुजरिम है।
जो जालिम हाकिम,
हुकूमत करते है।
लानत है, सौ लानत है।
वह तुझसे ज़ुबा तक छीन चुके
पर फिर भी तेरे नाम से डरते है।
तेरी ख़ामोशी पर कोई आह कहे।
उसे जिंदान में धरते है।
तेरे वजूद का बस तू ही हामिल है।
तेरे उरूज लाज़िम था, लाज़िम है।
पापी पाप कर के
अपने पाप से डरते है।
घड़ा पाप का भरगाया है।
फूटेगा, अब टूटेगा,टूट के गिरता है।
ए कश्मीर, चिनार की शाख पर देख
कई नया शगूफा फूटता है।