2011 की जनगणना के अनुसार, भारत का हर चौथा भिखारी मुसलमान है। भारत में सबसे अधिक अनपढ़ भी मुस्लिम ही है। लेकिन क्यों?
भारत के जो मुसलमान हैं वह अपने दीन और दुनिया की जो तालीम है उसमें बराबरी नहीं ला पाते हैं इसीलिए वह लोग शिक्षा बीच में ही छोड़ देते हैं या फिर हासिल ही नहीं करते हैं।
जनगणना के ताजा आंकड़े बताते हैं कि भारत में 42 .72% से अधिक मुसलमान अनपढ़ हैं।
यह भी अजीब इत्तेफाक है कि सबसे कम पढ़े लिखे और सबसे अधिक पढ़े लिखे दोनों ही देश के अल्पसंख्यक में है। जैन समुदाय में 25.7% ग्रेजुएट है, जब कि जनसँख्या में वो केवल 0.4 % है. मुसलमान जनसंख्या में 13.4% है, उनमे ग्रेजुएट केवल 2.76 % .
भारत में मुसलमान ग्रेजुएट की संख्या इतनी अधिक नहीं है जितनी भारत के भिखारियों में मुसलमान की संख्या है । सच्चर आयोग की रिपोर्ट पहले ही बता चुकी है कि भारत में मुसलमानों की हालत दलितों से भी बदतर हो चुकी है।
बहुत ही मशहूर लेखक असगर वजाहत ने इसमें बहुत बड़ा सवाल उठाया है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में मुसलमान अनपढ़ क्यों है? लेखक असगर जी का मानना है कि भारत के मुसलमान में बहुत ज्यादा फर्क पाया जाता है। उत्तर भारत का मुसलमान और दक्षिण भारत के मुसलमान में काफी फर्क आपको देखने को मिलेगा अपने धर्म, मतों, विचारों,को लेकर। यह लोगों में आपस में बातचीत नहीं करते है यह लोग ज्यादातर अपने धर्म गुरुओं की बात सुनते हैं जिस कारण इनमें शिक्षा की बहुत कमी है। क्योंकि इनके धर्मगुरु शिक्षा प्राप्त करने से उन्हें मना करते हैं सिर्फ दीन की तालीम हसिल करने को कहते है और वो भी वो पूरी नहीं करते।
असगर जी का यह भी कहना है कि जो मुस्लिम धर्मगुरु है वह खुद ही नहीं चाहते हैं कि मुस्लिम समाज ज्यादा से ज्यादा तालीम हासिल करें क्योंकि उन्हें एक तरह का डर लगा हुआ है कि अगर मुस्लिम समाज ज्यादा तालीम हासिल करेगा तो वह उनकी पकड़ से और इस्लाम धर्म से बाहर चला जाएगा और वह अपनी बल शक्ति खोना नहीं चाहते हैं। इसीलिए वह मुस्लिम समाज को तालीम हासिल करने, शिक्षा प्राप्त करने के लिए आगे नहीं बढ़ने देते हैं।
समाजशास्त्री प्रोफेसर राजेश मिश्रा का भी यही कहना है। लेकिन वह दूसरे तरीके से कहते हैं। वह कहते हैं कि मुस्लिम समाज के बीच जो भी कुछ तालीम को लेकर चलाया जाता है वह एक मजहबी चोला पहनकर ही चलाया जाता है जिससे लोगों में जागरूकता नहीं आती है और उन्हें शिक्षा का महत्व समझ में नहीं आता है।
लखनऊ के प्रसिद्ध समाजसेवी तारीख सिद्दीकी कहते हैं कि मुसलमानों की तालीम का काम बड़े पैमाने पर मुस्लिम संस्थाएं शुरू करती है लेकिन कुछ समय बाद वे संस्थाएं धार्मिक कामों में ज्यादा दिलचस्पी दिखाने लगती है। जाहिर है कि उन पर सामाजिक दबाव बढ़ता है और काम करता है। हालांकि वह यह भी कहते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी और इसी तरह की दूसरी मुस्लिम शैक्षणिक संस्थाओं में जाकर इस बात का एहसास होता है कि मुसलमानों में शैक्षिक रुझान बहुत तेजी से बढ़ रहा है। हाँ यह काम अभी पिछले 10 वर्षों में ही शुरू हुआ है तो इसके नतीजे भी 10 साल के बाद ही दिखने लगेंगे।
भारत को जो मुसलमान है वह शिक्षा ना प्राप्त करके बहुत सारी मुसीबतों में घिर जाता है। जैसे कि उसे अनपढ़ होने की वजह से या कम पढ़ा लिखा होने की वजह से अच्छी नौकरी नहीं मिलती है। उसे बेकारी करना पड़ता है या फिर घर बैठना पड़ता है। भुखमरी, गरीबी ,बेरोजगारी यह सारी समस्याओं से जूझना पड़ता है।
Introduction:
Mera naam Noorsaba hai.
Mein Mumbai Mandala mein rehti hu aur abhi me Mumbai university mein MA political science Kar Rahi hu, Jo Mera favourite subject hai.