पहली बात मैं आपको बता दूँ, मजदूर का मतलब गरीब से ही नहीं होता है। जो व्यक्ति किसी भी संस्था या निजी के लिए काम करता है और बदले में मेहनताना (पैसे) लेता है, वह मजदूर है। मजदूर वह इकाई है जो हर सफलता का अभिअंग होता है। फिर चाहे वह इंटगारे में सना इंसान हो या फिर ऑफिस की फाइल्स के बोझ तले दबे कर्मचारी हो।
नौकरी और नौकर शब्द में तो ‘ई’ की मात्रा का फर्क है, पर वह स्थान जहाँ लोग नौकरी करते है, वहाँ ‘ई’ की मात्रा का भी फर्क मिटा कर नौकर ही समझ लेते है, और ये आम है अनोपचारिक क्षेत्रों में।
जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि, मजदूर केवल इंटगारे का काम करने वाला इंसान ही नहीं होता बल्कि दफ्तरों में बैठा कर्मचारी भी मजदूर है, किन्तु उनका वेतन काफी अच्छा और शारीरिक श्रम कम होता है। यही कारण है के वह उनलोगों के समक्ष अच्छा जीवन व्यतीत करते है जो अनोपचारिक क्षेत्र में शारिरिक श्रम करते है।
उदाहरण के रुप मे एक टेलर जो एक बड़े कारखाने में कपड़े सीता है, जिसे एक कमीज़ (top) सिलने का मेहनताना 20रू मिलता है। और वही कपड़ा विदेशों में 2000रू में बिकता है, तो यह हजारों का मुनाफा किसे हुआ?? उस कारखाने के मालिक को जिसका पैसों (capital) के अलावा उन कपड़े में और कोई योगदान नही था। यदि यही मज़दूरी 20रु की जगह 200 रु होती तो आज हमारे सामने मजदूर का कोई और ही स्वरुप होता। मजदूर के बच्चें भी अच्छी शिक्षा खानपान और सेहत के मालिक होते।
हमारे देश में ही क्या पूरी दुनिया में एक चक्र बना हुआ है के मजदूर का बेटा मजदूर ही बने, आप से कोई कहने नहीं आएगा के मजदूर के बेटे हो तो मजदूर ही बनो परंतु वह चक्र आप को मज़दूरी से आगे बढ़ने ही नहीं देगा। क्योंकि सभी के मस्तिष्क में ये धारणा जमी हुई है। यदि एक मजदूर का बेटा शिक्षित हो जाएगा तो मज़दूरी कौन करेगा?? कम पैसों में ज्यादा मेहनताना कैसे करेंगे ?? शिक्षा से तो वह जागरूक हो जाएंगे, फिर तो ये अमीर का अमीर बनने वाला चक्र उल्टा हो जाएगा।
आइए इसे थोड़ा और स्पष्टरूप से समझते है। सलमान जो एक बड़ी स्टील कंपनी का मालिक है, और आरिफ सड़कों और नालों को बनाने वाला मजदूर है। सलमान की मासिक आय 50,000रु है और आरिफ की मासिक आय 5000रु है। सलमान के पास खुद का घर, गाड़ी, और जीवन व्यतीत करने के सभी सामान मौजूद है और आरिफ किराये के 10×10 के घर मे रहने वाला प्रवासी श्रमिक है, जिसे पानी से लेकर टॉयलेट तक के पैसे देने है।
सलमान के बच्चे अच्छे बड़े प्राइवेट स्कूल में पढ़ते है, जिनके अभिभावक भी शिक्षित घर पर पढ़ाई का माहौल भी है साथ मे ट्यूशन, तो वहीं आरिफ के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते है क्योंकि पिता का तो सारा वेतन घर का किराया, पानी, लाइट, टॉयलेट, खाना और दवाओं में ख़र्च हो जाता है। तो आप ही अनुमान लगाइये किसको विशेषाधिकार (privilege) मिलेगा।
ज्यादा तर मजदूर छोटी सी उम्र में मजदूरी करना शुरू कर देते है घर के आर्थिक हालात को सुधारने के लिए, परंतु वह उसी चक्र में पिसते चले जाते है। —बहुसंख्या मजदूरों के बच्चे स्कूल जाने वाली पहली पीढ़ी (first generation of school going child) होती हैं। कोई उसे जीवन की सफलता का रास्ता दिखाने वाला नहीं होता है, कोई मार्गदर्शन नहीं, क्या पढ़ें के नौकरी सेक्यूर हो जाये, लोगों के कंधे से कंधा मिला कर चलने के लिए शिक्षा का ऐसा माध्यम चुनते है जो उनकी मात्र भाषा नहीं होती। एक अमीर के बच्चे के मुकाबले मजदूर के बच्चे को कई गुना ज्यादा मेहनत करनी होती है। महंगी शिक्षा साथ ही छोटी सी ही उम्र (13,14 age) से वह अंशकालिक काम ( part-time work) करना शुरू कर देता है ताकि घर का आर्थिक हालात कुछ अच्छा हो सके। परंतु कब वह पार्ट टाइम काम से पूरा दिन (full day work) काम करने लगता है, पढ़ाई छोड़ देता है, उसका एहसास उसे समय बीतने के बाद होता है। इस के पीछे का चक्र कुछ ऐसा है के उस बच्चे के पिता ने भी अपने बचपन मे ही काम करना शुरु कर दिया था। अब जब उनकी काम करने की असल उम्र आई तो वह थक गया और सेवा-निवृत्ति (retirement) चाहता है और उसका बच्चा भी उसकी तरह कच्ची ही उम्र में शिक्षा को अधूरा छोड़ कर मजदूर बन गया।
आइये जानते है मजदूर दिवस का इतिहास
हर साल 1 मई को दुनिया भर में ” अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस”, श्रम दिवस या मई दिवस (International Labour Day) मनाया जाता है। 1 मई 1886 को अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत एक क्रांति के रूप में हुई थी। जब हजारों की संख्या में मजदूर सड़क पर आ गए। ये मजदूर लगातार 10-15 घंटे काम कराए जाने के खिलाफ थे। उनका कहना था कि उनका शोषण किया जा रहा है। इस भीड़ पर तत्कालीन सरकार ने गोली चलवा दी थी, जिसमें सैकड़ों मजदूरों की मौत हो गई थी। इस घटना से दुनिया स्तब्ध हो गई थी। इसके बाद 1889 में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की दूसरी बैठक हुई। इस बैठक में यह घोषणा की गई हर साल 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाएगा और इस दिन मजदूरों को छुट्टी दी जाएगी। साथ ही काम करने की अवधि केवल 8 घंटे होगी। इसके बाद से हर साल 1 मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है। और इस दिन सभी मजदूरों को छुट्टी होती।
भारत में इसे सबसे पहले 1 मई 1923 को मनाया गया था जब लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने चेन्नई में इसकी शुरुआत की थी। इसका मुख्य उद्देश्य मजदूरों को सम्मान और हक्क दिलाना है। इस मौके पर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की रचना को याद किया जाता है, जिसमें उन्होंने मजदूरों के हक्क की बात की है।
हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे,
इक खेत नहीं, इक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे।
अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस का इतिहास
क्या ये 200 सालों के संघर्ष सिर्फ एक छुट्टी के लिए था?? नहीं, ये पूरा संघर्ष खुद के अधिकारों को पाने के लिए था, अपनी मेहनत के हिसाब से मेहनताना पाने का था।
हमें मजदूर दिवस हर साल जोशोखरोश के साथ मनाना चाहिए ताकि हमें और दूसरों को भी इस दिन का इतिहास याद रहे। इंसान अपने इतिहास से ही सीखता है और उसी के आधार पर परिवर्तन लाता है। यदि हमने अपना इतिहास भुला दिया तो हमें फिर वहीं से शुरुआत करनी पड़ेगी जो शुरुआत लगभग 200, 250 साल पहले लोगों ने की थी।
*नौकरी कर, नौकर न बन किसी का,
तेरा इतिहास निराला है, उसी पर चल,
सभी हक्क तेरे है, तू मांग मत, ले ले……*
मजदूर दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
परिचय:
मेरा नाम महरोज़ है। मैं TISS में काम करती हूं। मैं उरूज़ से पिछले एक साल से जुड़ी हूँ। मैं अपने आर्टिकल के माध्यम से मुस्लिम समुदाय की मानसिकता बदलने की एक छोटी सी पहल कर रही हूँ जैसे शिक्षा और अनोपचारिक छेत्र में मुस्लिमों का अभाव। और एक इच्छा ये भी है के लोगों का भी नाज़िया बदले मुस्लिमों को देखने के प्रति।
Khair mubark
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Aap ne bahot acha likha Allah aap ko aage or kamiyabi den
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