अपना सब कुछ छोड़ जो आए थे कभी
– Salma Khan
उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ा अपने पाव से ।
कुछ उमीद और जज्बा लिए वो
खाली हाथ ही तो निकले थे अपने गांव से ।
जो क़दम निकले थे कभी सहर की तरक्की देख
वो आज लौट रहे है मेरे गाव की छाव में।
ऐसा नहीं ह के महामारी गांव में नहीं
पर रोटी और मौत मेरे गांव की सही ।
जो महनत करते थे अपने देश में ,वो कर रहे थे सफर पैदल ही तय
जो रहते थे विदेश उन्हें बुलाया जा रहा था ऐरोप्लेन से
कहीं ना कहीं फर्क अता ह पढ़े_लिखें और अनपढ़ का
पर माजदू का बेटा मजदूर बनेगा ये रीत भी तो ह ज़माने से।
इस सहेर में खाने के लिए ठहरा हूँ मैं
मेरे गाँव वालों को लगता है सहरिया हूँ मैं
घर वालो को देखने की चाह में गया गांव मैं
दूर रखा घर वालो से कहा सहेर से आया हूँ मैं ।
ये आंसू सिर्फ तकलीफ़ मे नहीं निकलते
कुछ निकलते ह लाचारी से ।
मुझे फक्र ह उस पैसे पे
जो कमाया मैने मजदूरी से ।

Mera naam Salma hai.
Mein Mankhurd Mandala mein rehti hu.
Mujhe poem likhna bohot pasand hai.