~ Written by Gulaksha
आज के समय मुस्लिम आबादी 14.2% है । जिसमें से 4% मुस्लिम graduation किए हैं । मगर सबसे बड़ी बात यह सोचने की है 4% मुस्लिम ग्रेजुएशन किए है । इस्लाम में तो ज्ञान को सबसे ऊंचा रखा गया है । इस आंकड़े से यह पता चलता है कि मुस्लिम शिक्षा को लेकर काफी पीछे चल रहे हैं । मगर सबसे ज्यादा चौका देने वाली बात यह है कि मुस्लिम लड़कियां और मुस्लिम औरतें सबसे कम शिक्षित है।
इस्लाम में तो यह बताया गया है कि “औरतों की इज्जत करना चाहिए , यह भी कहते हैं कि लड़कियां घर की रहमत है” यह दोनों बातें मुझे यह सोचने पर मजबूर कर देती है। इतनी सारी घटनाओं का सामना करना पड़ता है महिलाओं को खासकर वह घटना जो शिक्षा से जोड़ी जाती है। बिना शिक्षा के महिलाओं को अनादर कराया जाता है। वह अपने फैसले नहीं ले सकते हैं चाहे वह सही है। वह निर्भर करता है उसकी परिवार और समाज। पर कि वह अनको स्वीकृति देना है यह नहीं देना है? उनकी इस तरीके की मानसिकता बना दी जाती है कि इस्लाम यही सिखाता है यही उनका कर्तव्य है। चाहे वह पिता , भाई ,पति या समाज के माध्यम के रूप से बताया जाए।
मुस्लिम महिलाएं और लड़कियों कम शिक्षित होने के कारण काफी तकलीफ का सामना करना पड़ता है। जैसे कि वह अपनी आजादी और हक के लिए नहीं लड़ पाती है। शिक्षा ना होने के कारण वह अपने परिवार के कोई भी बातों को लेकर सलाह नहीं दे पाती है क्योंकि उनके मन में यह डर बैठा दिया जाता है कि वह इतनी होशियार नहीं है जो वह सलाह दे सके और ना ही इतनी अक्ल है उन्हें। अपने जिंदगी के सही फैसले नहीं ले पाती है,और ना ही कोई फैसला लेने के लिए वह सक्षम है। यह शिक्षा ना होने के कारण मुस्लिम महिलाओं में जागरूकता की कमी हो रही है।
जिन घरों में लड़कों पढ़ाया जाता है खासकर वह English medium से पढ़ाई करते है। लड़कियों को यह बोला जाता है कि अंग्रेजी से क्यों पढ़ाते हो इस इस्लामिक किताबें भी पढ़ाओ। यह सलाह देने लगते हैं की खासकर लड़कियों को उर्दू मीडियम और इस्लामिक किताबों तालीम देना चाहिए। वह तो दूसरे घर चली जाएगी और अलग अलग तरीके की बातों का इस तरह उपयोग करते हैं कि जिनका प्रभाव उनके माता-पिता पर होता है। जैसे जैसे लड़कियां बड़ी होती है उनके परिवार के मन में पढ़ाई के महत्व कम कर दी जाती है। जिसका असर यह है कि लड़कियां शिक्षा नहीं ले पाती है। मैं अपने आर्टिकल के माध्यम से यह भी बताना चाहूंगी कि अरब कंट्री में सबसे प्रथम महिला थी जो शिक्षा प्रदान की है। जिनका नाम फातिमा अल फिहरी है। फातिमा एक धर्मनिष्ठ मुस्लिम थीं, सक्रिय रूप से दान और सामुदायिक सेवा में संलग्न थीं, और शिक्षा के मूल्य में दृढ़ता से विश्वास करती थीं। उसने अपने प्रिय गृहनगर का नाम मदरसा रखा: अल-क़रवाईयिन।
https://medium.com/swlh/the-woman-who-founded-the-worlds-first-university-f1d014d38871
इतनी बड़ी मिसाल है हमारे सामने फातिमा अल फीहरी कायम किया है। फिर भी इनका असर समुदाय पर क्यों नहीं है? जैसे जैसे लड़कियां बड़ी होती है उनके परिवार के मन में पढ़ाई के महत्व उनके मन में कम कर दी जाती है। जिसके कारण यह है कि लड़कियां शिक्षा नहीं ले पाती है।
मानती हूं कि इस्लामी किताब पढ़ना चाहिए और उर्दू भाषा भी आना चाहिए। इसका मतलब यह तो नहीं वह दूसरी भाषा मैं शिक्षा नहीं ले सकती। उच्चतर शिक्षा नहीं कर सकती। मानती हूं दीनी ज्ञान होना जरूरी है साथी साथ दुनियावी ज्ञान क्यों नहीं देना जरूरी है ? क्या महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े नहीं होना चाहिए? क्या वह अपने बूढ़े माता पिता और अपने परिवार का सहारा नहीं बन सकती ?