बेटियाँ

~Written by Umera

पहले की ये सोच गलत थी जहाँ बेटियों को बोझ समझा जाता था। उनके जन्म के समय ही उनकी शादी की जिम्मेदारियों के बारे में सोचा जाने लगता था। पहले लोगों की सोच थी के अगर लड़का पैदा होगा तो उनके खानदान को आगे बढ़ाएगा और लड़की नाक कटवा देगी। माँ को हज़ार ताने सुनने पड़ते थे। 

आज के समय में पहले से बहुत बदलाव आया है। अगर कहा जाये के लड़का नाम रोशन करेगा तो लड़कियां भी किसी से कम नहीं। आज लडकिया लडको के समान ही काम कर रही हैं। दूसरी तरफ, आज के समय में लड़कियाँ भी लड़कों की बराबरी करने लगी है। उनके समान अपना परिवार चलाने की क्षमता रखती हैं।

यदि बात की जाए लड़कियों की शिक्षा की, तो पहले लड़कियों को शिक्षा की मनाई थी, सिर्फ घर के काम करती थी| अगर कोई लड़की पढना चाहती थी तो सवाल रहता था की लड़की पढ़कर क्या करेगी? स्कूल की पढ़ाई यदि करने दी जाती थी, तब भी कॉलेज की शिक्षा उन्हें नसीब नहीं होती थी। दूसरी ओर लड़को को  खूब पढ़ाया जाता था। लड़कियों को शिक्षा न देने के कारण भी अनुचित होते थे- लड़की ने आखिर में शादी ही तो करनी है, लड़का लड़की से ज्यादा पढ़ा-लिखा ढूँढना पड़ेगा।

शायद लड़की को इसलिए भी नहीं पढ़ाते थे की अगर लड़की पढ़ लिख गयी तो वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो जाएगी, समाज की असमानता एवं विषमता के खिलाफ आवाज उठाएगी।

आज काफी हद तक सुधार आया है, लड़कियां अधिक संख्या में शिक्षित हो रही हैं। सोच में काफी बदलाव आया है। पहले सिर्फ दसवी पास करने वाली लड़कियां अब डिग्री तक पढ़ती हैं, तथा और भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। आज की नारी किसी से कम नहीं है।

पहले बहु के गर्भ में लड़की होने का ज्ञात होने पर गर्भ गिराया जाता था। आज ऐसा नहीं है क्युकी ऐसे कार्य के लिए सरकार दंड देती है। ऐसा करने वाले चिकित्सक को भी दंड मिलता है।

पहले लड़कियों को घर से बहार तक नहीं निकला जाने दिया जाता था| घर से बाहर कदम रखने पर भी दस सवाल और ज़रा सी देरी पर और सवालों का सामना करना पड़ता था। आज  लड़कियां अपने फैसले स्वयं कर रही हैं ।

भले ही लोग ये कहे के लड़कियां बोझ नहीं, मगर उनका  बर्ताव तो आज भी वही जाहिर करता है।

जन्म से ही बच्ची के शादी की समस्या, बच्ची के रिश्ते की समस्या, अरे ऐसे रहो ससुराल में जाकर ये होगा, वहां लोग क्या कहेंगे, अभी से ही तौर तरीके सीख लो, ये सब ज़ाहिर करता है के लड़कियों को बोझ और पराया समझा जाता है । शायद धीरे धीरे ये भी बदलाव जल्द ही लोगों में आए। 

“बेटी बोझ नहीं होती, बेटी तो बोझ उठाती है।
किसी के सपनो का तो, किसी के आत्मसम्मान का।”

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