ज़माना अक्सर आशिकों का साथ नही देता ये मालूम है
मगर यह भी तो हकीकत है
ज़माने ने कई बार इश्क की दासतां सुनी है
कई बार आशिक और माशुक के लिए एक दर खुला रखा है
इन गज़ल उनकी कहानी पर लिखी है
एक शेर उनके अहसास पर अर्ज किया है
पेड़ पर बैठे दो परिंदे है यह तो
कह कर तन्हा छोड़ दिया है
जब भी देखा है उन्हें
अपने आप में गुम हुऐ
एक दूसरे के मस्त नजर और आगोश में
अपनी पहली मुहब्बत याद कर
सुर्ख गालों पर लाई मुस्कुरा दिया है
हां यह सच है ज़माना अक्सर
आशीको का साथ नही देता है
लेकिन जब जब साथ दिया है
वादिए .ये. मोहोब्बत में अपने नाम का
एक फूल खिला दिया है
~ Aquila Nazma Khan