~Written by Noorsaba
जिंदगी तुझे जीने का सलीका हम ने नजर अंदाज करके ही सीखा।
कभी कभी लोगों को, कभी बातों को, कभी अपने ही हालातों को।
इस्लाम धर्म में लड़कियों को और औरतों को बहुत सारे अधिकार और इज्जत दी गई है। लेकिन जो अपने आप को धर्म के रखवाले कहते हैं वही इस्लाम धर्म के लिए खतरा बनते जा रहे हैं।
मुस्लिम औरतों को सच में परेशानी है और वह कई समस्याओं से जूझ रही हैं। मुस्लिम लड़कियों को पढ़ाई नहीं करने देते हैं, अपनी बीवियों को मारते हैं और ज़लील करते हैं। माँ – बाप लड़कियों से बिना पूछे उनकी बिना मर्ज़ी के शादी कर देते हैं। इस्लाम धर्म ने मुस्लिम औरतों को भी आज़ादी से जीने का हक दिया है, यह सब धर्म के ठेकेदार नहीं बताते है।
दहेज की वजह से कितनी लड़कियों की मौत होती है? उदाहरण : आयशा आरिफ. ऐसे ही कई आयशा गुजर गई होंगी और शायद आगे और भी गुजरे लेकिन यह जो धर्म के ठेकेदार हैं इनकी जुबान नहीं खुलती. तब इन्हे एक भी फतवा देना याद नहीं रहता पर वहीं पर अगर कोई सानिया मिर्जा, जायरा,वसीम जैसी मुस्लिम लड़कियां अगर किसी इंटरनेशनल लेवल पर गेम खेलें या बॉलीवुड में काम करें, आगे बढ़े तो इन्हें फतवा याद आ जाता है।
अगर इस्लाम ने मर्दों को तलाक का हक दिया है तो कुछ कंडीशन है। पर मर्द तलाक के अधिकार को एक बंदूक जैसे इस्तेमाल करते हैं। अगर औरत ने खाना नहीं पकाया तो तलाक, अगर माँ का पैर नहीं दबाया तो तलाक, अपने शौहर से बहस – लड़ाई की तो तलाक! यह इस्लाम धर्म सिर्फ़ पुरुषो का ही नहीं है औरतों का भी है। इस्लाम धर्म में एक साथ तीन तलाक नहीं दे सकते। लेकिन कुछ मर्दों ने औरतों को एक साथ तीन तलाक देकर घर से बाहर निकाल दिया है. जबकि इस्लाम में ऐसा नहीं। अगर शौहर अपनी बीवी को तलाक देता है तो शौहर को घर से निकल जाना चाहिए ना की बीवी को। लेकिन हमारे यहाँ तलाक देकर बीवी को ही घर से निकाल दिया जाता है। उदहारण : शाह बानो केस जो 1986 से चल रहा है अभी तक।
अब बात करते हैं हलाला की। यहाँ पर भी मर्दों ने अपनी पितृसत्ता को बनाए रखा है.. यहाँ पर भी इस्लाम का नाम लेकर औरतों के साथ शोषण किया जाता है। उनको टॉर्चर किया जाता है। मर्दों ने औरतों को बहुत ही कमजोर और कमतर समझा हुआ है। वह अपने मर्जी से तलाक देते हैं और जब उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है तो उसे किसी के भी पास ले जाकर की शादी करा कर उसे तलाक लेकर फिर ले आते हैं। उसके जज्बात और उसकी मन के बारे में कोई नहीं सोचता। इस्लाम का नाम ले लेकर कुछ मर्दों ने बहुत सारे ज़ुल्म किए हैं, उत्पीड़न दी है महिलाओं को।
लड़कियों का घर से बाहर निकलना पढ़ाई करना, अपनी मर्जी से शादी करना, किसी भी चीज में यह लोग इस्लाम का नाम लगाकर उन्हें रोक देते हैं। कुछ भी नहीं करने देते हैं और पढ़ाई भी नहीं करने देते हैं। कभी अगर किसी की डिलीवरी का टाइम आएगा तो बोलेंगे हम लेडीस डॉक्टर चाहिए अगर बच्ची पढ़ाने का समय आएगा तो फिर लेडीज टीचर ढूंढते है, ऐसा क्यों करते है?
“लड़कियों का घर से बाहर निकलना पढ़ाई करना, अपनी मर्जी से शादी करना, किसी भी चीज में यह लोग इस्लाम का नाम लगाकर उन्हें रोक देते हैं। कुछ भी नहीं करने देते हैं और पढ़ाई भी नहीं करने देते हैं। कभी अगर किसी की डिलीवरी का टाइम आएगा तो बोलेंगे हम लेडीस डॉक्टर चाहिए अगर बच्ची पढ़ाने का समय आएगा तो फिर लेडीज टीचर ढूंढते है, ऐसा क्यों करते है?”
कुछ पुरूष औरतों को दबान के लिए, कुचलने के लिए बहुत बड़ी-बड़ी हदीस और कुरान शरीफ की आयत का हवाला देते है। लेकिन लगता है उन्होंने इस्लाम धर्म के संस्थापक प्यारे मोहम्मद के जिंदगी के बारे में नहीं पढ़ा। हमारे प्यारे रसूल सल्लल्लाहो ताला वसल्लम ने अपनी जिंदगी में कभी भी अपनी बीवी को कोई तकलीफ नहीं दी। उनसे मार पीट नहीं की, ना उन्हें गाली गलौज की, ना उनसे दहेज की मांग की है। और अपनी बेटी को भी उन्होंने कितने प्यार से पाला था। उन्हें रहमत कहते थे। उनकी जो सबसे पहली बीवी थी, हजरत खतीजा कुबरा उनका अरब देश की सबसे बड़ा बिज़नेस था। प्यारे रसूल की वफात के बाद हजरत आयशा के पास लोग अपनी अपने मसले मसाइल लेकर आते थे और हजरत आयशा उनकी मदद करती थी। लोगों को गाइड करते थी। हम औरतों को ही अल्ला ताला ने यह ताकत दी हैं की वक्त आने पर हम अपने माँ बाप का बेटा भी बन जाते है और अपनी औलाद का पिता भी।
माना की टूट कर गिरी हूँ
पर फिर भी फूल हूं आवारा पत्ती नहीं
जो ठोकर मार दी हर किसी ने
किसी की पूजा की थाली का शायद हिस्सा थी
किसी के जनाजे का शायद भूला किस्सा थी
हो अगर कदर मेरी तो ही ज़मी से उठाना
वरना एक पल भी रुकने की जरूरत नहीं
बिन देखें अपने रास्ते चले जाना
बिन देखें अपने रास्ते चले जाना