मुझे भी शौक है इश्क़ में डूब कर इश्क़ के बारे में लिखने का,
कभी तेरी ज़ुल्फे तो कभी तेरी पायल के बारे में लिखने का.. के तेरे पायल की खनक कैसे धड़काती है मेरे हृदय को?
इस गुत्थी के रसायनशास्त्र के बारे में लिखने का…
जब तक पाठक दीवाना ना हो जाए तेरा!! उस हद तक लिखने का।
लेकिन अभी नहीं …
अभी लिखना है मुझे आशिक़ों की त्रासदी के बारे में,
बताना है रांझे को मजनू की व्यथा,
पढ़ना है समाज के हर एक आशिक़ की आंखों की पीड़ा … और लाना है सैलाब स्याही से कागज़ो पर…
वहीं कागज जिसपर लगाकर मोहर मिली है आजादी कुछ फ़ासीवादी लोगो को इश्क़ को नज़रबंद करने की,
करने की हत्या आशिक़ों की धर्म के नाम पर,
बांधने की जज़्बातों को बेड़ियो में,
आज़ादी,आज़ादी छिनने की,
आज़ादी सरेआम ऐलान करने की,कि औरतें होती है कमअक्ल फंस जाती है प्यार के जाल में कुछ मुल्लो और कतवो से,करती है शर्मशार धर्म को लगाती है कलंक परिवार के नाम पर।
वहीं आजादी जिसके के लिए चढ़ाये गए शीश,लटकाये गए वतनपरस्त शूली पर कई बार अंग्रेज़ो द्वारा।
आज वही आज़ादी घूम रही है सड़को पर अपना अस्तित्व बचाने को,
करने को रिहा इश्क़ के परिन्दों को चाहे निकले नसों से खून या जिस्म से जान।
मेरा भी मन है तेरी गोद पर सर कर तेरी घनी ज़ुल्फो के छाव तले तेरी मदमस्त आंखों में गालिब-सा आग का दरिया पार करने की ख्वाहिश लेकिन शायद अभी नहीं …
कभी और किसी दूसरे जहान में लिखूंगा तेरे बारे में और सुनाऊंगा नज़्म और कविताएं मेरी चाहत के सिर्फ तुझे और सो जाऊंगा तुझे सीने से लगाए तेरा चेहरा निहारते हुए।
लेकिन अभी नहीं क्युकी इस वक़्त इश्क़ से ज़्यादा इश्क़ पर हो रहे उत्पीड़न ने छीनी है मेरी नींदे,गाढ़े है कीले मेरे सीने पर,जिसमे में रिस रहा है खून जो है बेताब स्याही से मिलने को। उसी तरह मुझे मिलाना है इश्क़ को क्रांति से जो है बे-मतलब एक दूसरे के बिना।
इसलिए अलविदा ! अब मैं मिलूंगा तुम्हे तब,जब इश्क़ और क्राँति बसाएंगे अपना घर एक साथ किसी नदी के किनारे,ठीक उसी के छोर पर पेड़ के तले इंतज़ार करूँगा मैं तुम्हरी गोद और घनी ज़ुल्फो की छाँव का।और सो जाऊंगा तुम्हारे सीने पर रख कर सर चैन-ओ-अमन से,बहते हुए पानी का मीठा शोर सुनते-सुनते।
~ Rizwan Choudhary