औरतें उठी नहीं तो…….. जुल्म बढ़ता जाएगा ।
औरतें उठी नहीं तो…….. जुल्म बढ़ता जाएगा ।
औरतें उठी नहीं तो…….. जुल्म बढ़ता जाएगा ।
आंतरराष्ट्रीय महिला दिन 8 मार्च 2020
औरतें उठी तो…….. ज़माना बदलेगा ।
औरतें उठी तो…….. ज़िदंगी खूबसूरत होगी |
आज से 40 साल पहले भारत और महाराष्ट्र में महिला दिन की शुरुवात चंद्रपुर की यौन उत्पीड़न
की शिकार एक आदिवासी महिला को न्याय दिलाने के लिए एक जुलुस निकाल कर की गयी थी
I जिन क्रूर पुलिस कांस्टेबलों ने उस महिला का उत्पीड़न किया था ,उनको 1979 में कोर्ट ने बरी
कर दिया था । पुरे देश में महिलाओं के बीच इस कोर्ट के फैसले पर बहुत आक्रोश था ।
हमारे इतिहास में एक समय ऐसा था जब लड़कियों और महिलाओं को बाहर जाने पर मनाई थी,
स्कूल जाने पर , बाहर काम पर जाने पर और वोट डालने पर रोक थी । महिलाओं को किसी
भी चीज का मालिकाना अधिकार नहीं था, यहाँ तक की अपने शरीर के पर भी कोई अधिकार
नहीं था ।
महिलाओं ने अकेले और सामूहिक रूप से अपनी परिस्थिति को बदला है । यह एक बड़ा लम्बा
संघर्ष रहा है , जिसकी शुरुआत हम सभी औरतों की कई पीढ़ियों से हुई हैं , हम महाराष्ट्र की
महिलाएं सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख जैसी महिलाओं से प्रेरणा लेते है , जिन्होंने
महिलाओं के शिक्षा अधिकार के लिए संघर्ष किया हैं । महिलाओं के
शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, अपने शरीर पर अधिकार, लैंगिक पहचान और
लैंगिकता, हमारे जीवन के और लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए , हम जिस देश के
नागरिक है , हमारे देश के संविधान के अनुसार चलनेवाले प्रजातांत्रिक देश के लिए, पूरे देश
विदेश की सभी महिलाओं ने मिलकर आवाज उठाई है|
इस वर्ष हम ऐसे माहौल में यह दिन मना रहें हैं , जहाँ हमारे समाज में महिलाओं के खिलाफ
हिंसा में कई गुना बढ़ोतरी हुई है | खासतौर से महिलाओं पर होने वाले लैंगिक अपराधों में
वृद्धि हुई है, अनुसूचित जाति जमाती और अल्पसंख्यकों और विशेषतः मुस्लिमों पर होनेवाले
अत्याचारों में बहुत वृद्धि हुई है | आज देश में हर दिन लगभग 90 लैंगिक शोषण के केस
रिपोर्ट होते हैं | 2010 से जाति के आधार पर होने वाले अत्याचार लगभग 25% बढ़ गए
है | 2014-2015 के बीच सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं 28% बढ़ गए हैं | पिछले कुछ वर्षों में
शिक्षा स्थानों में छात्रों पर पुलिस द्वारा किये गए हिंसा की घटनाएं हुई हैं |
आज हमारे संविधान की धर्मनिरपेक्षता की जड़ पर बार बार हमले हो रहे हैं | हमारे लोकतंत्र के
आधारस्तम्भ – सरकार, पुलिस, कानून व्यवस्था , मीडिया यह सभी हमारे लोकतंत्र की रक्षा
करने में असफल हो रहे हैं|
भूतपूर्व चीफ जस्टिस खुद के उपर लैंगिक शोषण का आरोप होने के बावजूद अपने पद पर
बरकरार रहें और पीडिता के साथ उत्पीडन और शोषण के बावजूद खुद ही खुदको सुरक्षित रखा
बल्कि पीड़िता को ही नौकरी से निकाल दिया गया । साथ ही अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमले ,
साम्प्रदायिक दंगे और कश्मीर के लोगों का सम्पूर्ण लॉक डाउन’, पिछले महीने दिल्ली में हुई
भयावह हिंसा, भेदभाव करने वाले कानूनों को दी गई चुनौतियां और नीतियाँ जिनसे बहुत बढ़े
जन समुदाय पर बहुत ही बुरा असर हुआ है | हमारी कानून व्यवस्था हर मामले को लंबे समय
तक टंगा रखकर न्याय देने में टालमटोल की प्रक्रिया दिखा रही है , इससे लोगों का इस
व्यवस्था से भरोसा उठता जा रहा है |
इस परिस्थिति में हमें सामूहिक शक्ति और संघर्ष करके ही आगे बढ़ना होगा | महिला
आन्दोलन द्वारा, हमारी नारीवादी राजनीति, अन्याय का विरोध और हमारे इकठ्ठा आने के
तरीके हमेशा से अलग रहे हैं | हमारा संघर्ष रोजमर्रा की ज़रूरतों और हमारे अधिकारों से जुडा है
, न की प्रतिष्ठा से , बड़े बड़े डैम (dam), या किसी विकास को मर्दानगी सा दिखाने से बड़ी
मात्रा में लोगों को विस्थापन और तकलीफ भुगतनी पड़ रही है | हमने सवाल पूछे है, हम
सड़कों पर उतरे हैं, हमने हमारे संघर्ष पर हमारे यकीन को दिखाया है ।
सबसे महत्वपूर्ण बात है कि हमारा मकसद न्याय हासिल करना है ना की बदला लेना | इसलिए
हमने बारबार सरकार ने उठाए भयानक क्रूरता और बदले से भरे, सजा देने की सरकार की
नीतियों को नाकारा है और नकारेंगे । हमारे संघर्ष हमारे रोजमर्रा के जिंदगी और अधिकारों से
जुड़े हैं । हम हमने तय किए इरादों से पक्के बंधे हुए है , इसलिए हमे यकीन हैं , महिलाओं की
कई पीढ़ियों से चलता आ रहा हमारा संघर्ष भविष्य की मुश्किलों का सामना करते हुए , ऐसे ही
मजबूती से आगे बढ़ता रहेगा ।
आज अगर हम भेदभाव करनेवाले क़ानून एन पी आर / एन आर सी / सी ए ए के वरोध में
नहीं खड़े हुए तो हमारी नागरिकता खतरे में आएगी , यह क़ानून हमारे पूर्वजों के जन्म की
जगह के कागजात पर हमारी नागरिकता तय करना चाहता है I महिलाएं जिनका शादी के बाद
नाम और पता बदलता है और अनाथ, तृतीय पंथी या फिर ऐसे व्यक्ति जिन्हें उनके परिवार से
निकाल दिया जाता हैं, कठिन परिस्तिथियों में काम करने वाली महिलाएं, संस्थाओं में रहने
वाली महिलाएं और वो लोग जिनके पास कागजात नहीं हैं वो सारे के सारे लोगों को संदिग्ध
करार कर दिया जायेगा उनकी नागरिकता खतरे में होगी वो गैर – नागरिक होंगे । सरकार
समर्थक सोशल मीडिया कई गलत बातों का प्रचार कर रही है ।
पुरे देश में दिल्ली के शाहीन बाग से प्रेरित होकर जगह जगह पर महिलाएं शांतिपूर्ण तरीके से
विरोध कर रही हैं । देशभर में, मुंबई, पुणे, मुंब्रा और कई इलाकों में नए नए तरीकों से महिलाएं
अपने हकों का दावा कर रही हैं । आखिरकार महिलाओं ने अपने हकों के लिए दावा करना शुरू
कर दिया है और महिलाये अपनी नागरिकता और न्याय , शांति और प्यार की राजनीती की
मांग कर रही हैं !
महिलाएं और महिलाओं के संघर्ष ने हमेशा से समाज में न्याय , शांति और एकता की ज़रूरतों
को आगे रखा है और भेदभाव और नफरत का विरोध करती रही हैं ।
हम हिंसा के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखेंगे और हम शांतिपूर्ण तरीकों से अपने हक का दावा
करते रहेंगे । हम यह मांग करते हैं की , वो नेता जो लोगों को लोगों के खिलाफ भड़का रहे हैं,
दंगे करवा रहे हैं घरों को जला रहे हैं और लोगों को नुकसान पहुंचा रहे हैं और मार रहे हैं
उनको सजा दी जाए ।
हमारा जन्म इस देश में हुआ है , हम इस देश के नागरिक हैं ।
हम राष्ट्र निर्माण का काम करते हैं ।
हमने इस देश की संरचना में योगदान दिया है ।
हम इस देश की आत्मा और जीवन हैं ।
हमारी नागरिकता साबित करने के लिए हम कागज़ नहीं दिखाएंगे ।
हम एन आर सी / एन पी आर /सी ए ए को नकारते हैं ।
संस्थाएं :
स्त्रीवादी समूह आणि अन्य नागरिक मुंबई , अन्नपूर्णा परिवार ,आवाज- ए- निस्वां , बेबाक कलेक्टिव ,अक्षरा, अनुभूती, ऑल इंडिया असोसिएशन , बॉम्बे कॅथलिक सभा, नारी अत्याचार विरोधी मंच, जस्टीस कोअलीशन फॉर रिलिजंस, जगण्याच्या हक्काचे आंदोलन, कामकाजी महिला समन्वय समिती, महिला मंडल फेडरेशन, कामगार एकता,कुसुमताई महिला कल्याण य, कष्टकरी घर कामगार संघटना, कष्टकरी संघटना,लबिया – ए क्वीअर फेमिनिस्ट एलबी टी कलेक्टिव, लोकांचे दोस्त, मजलिस, महाराष्ट्र महिला परिषद, नॅशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन , नॅशनल हॉकर फेडरेशन , परचम ,परिसर भगिनी विकास संघ, पॉईंट ऑफ व्ह्यू, प्लॅटफॉर्म फॉर सोशल जस्टिस, सर्वहारा जनआंदोलन, सख्य , स्नेहा, स्त्री मुक्ती संघटना, ऊर्जा , वाय डब्ल्यू सी ए (YWCA) ,युवा .