थोड़ा भोली हु पर बेवकूफ तो नहीं
हां मासूम भी हूँ पर नासमझ तो नहीं
सबकी फिक्र रहती हे मुझे
पर अपने हक़ से महरूम हरगिज़ नहीं
हां थोड़ा अलग हु मैं तुमसे
लेकिन कमज़ोर नही हूं मैं
मज़बूत हूं इतनी के खुद के लिए लड सकुं
बहुत हुई ये ज़ुल्म सितम की लड़ाई
अब अपनी आवाज़ मैं खुद बनूंगी
जब जब गिराओगे तुम मुझे
पैरो पर खड़ी होकर तुम्हे दिखाउंगी
बहुत कह लिया तुमने मुझे बुज़दिल हु मैं
अब अपना नाम आसमान में लहराऊंगी
लङकी हो तुम क्या करोगी पीछे रहो मेरे महफूज़ रहोगी
अब बहुत हुआ, तुमसे आगे बढ़कर दिखाउंगी
हां कहोगे तुम मुझे नारीवाद तो कहना
अब मैं नारीवाद अपने हक़ के लिए लड़कर दिखाउंगी

Introduction
मैं आसमा शैक्ख मास्टर आईटी की स्टूडेंट हूं| मैं पढ़ाई के साथ-साथ कविता भी लिखती हूं| मेरी कविता में लोगों की भावना और दर्द नजर आता है|